अक्तूबर 1994 की काली रात, कई हैं गुनहगार, उनकी सजा का भी इंतजार है; आंदोलनकारी बोले- सिर्फ दो ही सिपाही दोषी करार

अक्तूबर माह, साल 1994 की वो काली रात… जब अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर निहत्थे उत्तराखंडी आंदोलनकारी दिल्ली के लालकिले पर रैली करने जा रहे थे। एक और 2 की रात अचानक उन पर पुलिस ने गोलियां बरसा दीं। महिलाओं की अस्मत भी लूटी गई। कई आंदोलनकारियों की जान भी चली गई। गोलीकांड के 30 वर्ष बाद अब फैसला आया है। 2 सिपाहियों को सजा भी सुनाई गई है। राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि इस कांड के कई बड़े गुनहगार हैं जिनके गुनाह का फैसला होने का भी इंतजार है।

 

वह दौर था जब अलग राज्य की मांग के लिए मातृ शक्ति, युवा, कर्मचारी, आम जनता व छात्र तक सड़कों पर ही उतर आए थे। चरम पर पहुंचे आंदोलन को मंजिल तक पहुंचाने के लिए दिल्ली के लाल किला में रैली निकालने के लिए गढ़वाल व कुमाऊं से आंदोलनकारियों के जत्थे बसों में सवार होकर दिल्ली की ओर भी निकल पड़े।

 

गढ़वाल से आ रहे आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर और कुमाऊं से जा रहे आंदोलनकारियों को मुरादाबाद में रोका गया। आंदोलनकारियों का रास्ता बंद करने के लिए सड़क पर ट्रकों की लाइन तक लगाकर जाम लगा दिया गया। कुमाऊं के आंदोलनकारियों के पास कोर्ट का एक आदेश भी था, जिसमें कहा गया था कि आंदोलनकारियों को सुरक्षित दिल्ली जाने व वापस आने दिया जाए। इस आधार पर कुमाऊं के आंदोलनकारियों को दिल्ली जाने की अनुमति भी दी गई। गढ़वाल से आ रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां भी बरसाईं गईं। तब पुलिस के बड़े अफसरों व कई अधिकारियों के नाम भी सामने आए थे। अब तक कई गुनहगारों की मौत भी हो चुकी है।

 

रामपुर में तिराहा कांड

रविंद्र रावत उर्फ गोलू, नेहरू कॉलोनी

सतेंद्र चौहान, भालावाला

गिरीश भदरी, बदरीपुर

राजेश लखेड़ा, अजबपुर

सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऋषिकेश

अशोक कुमार, ऊखीमठ

राजेश नेगी, भानियावाला

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा अदालत के निर्णय से पीडि़तों और उनके परिजनों को अब बड़ी राहत मिली है। उन्हें लंबे समय से न्याय का इंतजार भी था। कहा, मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 2 अक्तूबर 1994 को आंदोलन के दौरान हमारे नौजवानों और माताओं-बहनों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव किया गया। इसमें कई आंदोलनकारियों की शहादत भी हुई। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना भी थी। कहा, आंदोलनकारियों की आशाओं व आकांक्षाओं को पूरा करना सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य है।

 

हल्द्वानी से प्रमुख राज्य आंदोलनकारी हुकुम सिंह कुंवर ने कहा दो सिपाहियों को सजा सुना देने से राज्य आंदोलन के शहीदों की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। असल गुनहगारों को सजा भी होनी चाहिए थी।

 

मोहन पाठक ने कहा निहत्थे आंदोलनकारियों को मारा गया, जिन अधिकारियों ने गोली कांड का आदेश दिया, जिनके इशारे पर इतना बड़ा कांड हुआ, उनका सजा का नंबर अब तक भी नहीं आने से हम निराश हैं।